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Tuesday, April 30, 2013

चीनी घुसपैठ और सरबजीत पर हमले का दर्द !

चीनी घुसपैठ पर प्रधान मंत्री की नसीहत है कि मामले को ज्यादा तूल न दिया जाए | लेकिन सरबजीत के मामले में प्रधान मंत्री खामोश रहे | दोनों का संदर्भ अलग है | पहले चीन पर चर्चा हो जाए | चीन ने हमारी संप्रभुता को ठेंगा दिखाते हुए लद्दाख सीमा के दौलतबेग ओल्डी में 20 किमी अंदर घुसपैठ कर अपना टेंट लगा चुका है | इसके पहले 2012 सितम्बर में चीनी हेलीकॉप्टर चूमर के भारतीय सीमा में घुसकर भारतीय सेना के टेंट और पुराने बंकर नष्ट कर दिए | कई बार चीनी हेलीकॉप्टर भारतीय सीमा का बेख़ौफ़ उल्लंघन कर चुका है | इसके पहले चीन ने 1950 के दशक ऊक्साई चीन ,1974 में पारसल आइसलैंड ,1988 में जानसन रीफ ,1995 में मिसचीफ रीफ और 2012 में स्कारब्रो सोल हमारी सीमा में घुसकर अपना बना लिया | लेकिन प्रधान मंत्री कहते है चीनी घुसपैठ को तूल न दे | हम भी मान गए | ऐसे खामोश हैं जैसे 1 अरब लोगों का खून पानी हो गया है |
अब आइए नजर डालें सरबजीत मामले पर | खवरिया चैनलों में भी सरबजीत पर हुए कारा बंदियों के हमले की खबरें हर कोण से दिखाई जा रही है | चीन के मामले में पानी बने खून का उबाल भी सड़कों पर दीख रहा है | यह कहीं से गलत नहीं है | लेकिन सवाल उठता है राष्ट्रीय स्वाभिमान चीनी घुसपैठ से ज्यादा आहत है या जेल बंदियों द्वारा सरबजीत पर हुए हमला का मामला | एक अरब के राष्ट्रीय स्वाभिमान को रौंदने वाला चीन इतना बेख़ौफ़ है कि हमारे राजनायिक प्रयासों को थोडा भी महत्व नहीं दे रहा है | लेकिन सरबजीत पर हमले के
बाद पाकिस्तान इतना शर्मसार तो जरुर हुआ कि सरबजीत के परिजनों को मुलाकात करने के लिए विजा दिया | चीनी घुसपैठ चीनी हुकूमत की रणनीति का हिस्सा है ,लेकिन सरबजीत पर हमला पाक कारा बंदियों की गुंडागर्दी से अधिक नहीं है | अब देश बताए कि भारत के पौरुष को कौन ललकार रहा है चीनी घुसपैठिए या पाक के काराबंदी ? माफ़ करेंगे मेरा यह सवाल उन अंध राष्ट्रभक्तों से नहीं है जिसकी राष्ट्रभक्ति से सिर्फ धार्मिक उन्माद पैदा होता है | ऐसे लोग मुट्ठी भर हैं | इन्हें अलगाव में डालकर बाकी लोग एकजुटता के साथ सड़कों पर चीन अक्रमंयता के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार नहीं कर सकते ?

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