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Friday, November 9, 2012

दोस्तों! तालिबानी हमले के बाद पाकिस्तान की बहादुर बेटी मलाला युसूफजई आज पूरी दुनिया में उस मुखर आवाज की प्रतिनिधि बन चुकी है जो महिलाओं की बंधन मुक्त जिंदगी के लिए गूंज रही है. जड़वादी सोच के खिलाफ लड़कियों की शिक्षा के सवाल पर मलाला ने जिस दिलेरी से खुद को मौत के निशाने पर खड़ा किया ऐसा इसके पहले शहीद भगत सिंह ने ही किया था. मलाला के संघर्षों से आने वाली पीढ़ी प्रेरित होती रहे, इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने दस नवम्बर के दिन को मलाला दिवस के रूप में घोषित किया है. यह संयोग है कि मलाला को लेकर मेरे अन्दर जो भावनाएं उमड़- घुमड़ रही थीं , वह काव्य छंदों में बंध कर दस नवम्बर को ही सामने आई. प्रस्तुत है मलाला को समर्पित यह कविता -

 








नई दुनिया, नया आगान
मौत के पदचाप सुनकर भी
बेपरवाह रही तू
विश्वास है तूझे
नहीं कोई क़तर पायेगा
तेरे हौसले के पंख .
तू जानती है
विरोध में हैं जो तेरे
उनका न मजहब, न पंथ
बंद जहनियत, बद गुमानियत
मकसद एक
तेरा अंत ! तेरा अंत !
फिर भी तू घबराई नहीं
दहशत से तू पथराई नहीं
सीने पर गोली खाकर भी
तू न हुई शून्य  चैतन्य.
पासा उनका उल्टा पड़ा
लहू जो सड़कों पर तेरा बहा
हर कतरा जी उठा है
बन दीपन.
बेकार नहीं गया
तेरा लहू का बहना
दीप शिखा सी सुलगती
तेरे विचारों का लपट उठना
गाम - गाम धधकना.
अब मलाल होगा उनको
जो न मिटा सके तुमको
तेरे जज्बात ने रचा
बगावत का नया विधान
नई दुनिया का नया आगान.
                                                                     सुबोध सिंह पवार
                                                                     4/A सन्डेबाज़ार, बेरमो
                                                                        बोकारो, झारखण्ड

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