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Monday, December 31, 2012

दोस्तों ! नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ मेरी यह नई नज़्म आपकी नज़र है .
क्या बात है !


विस्मृत लम्हे
उदाश क्षणों में
आ जाए तो क्या बात है!
टूटी उम्मीदें
फिर से जेहन में
छा जाए तो क्या बात है!
बिखरते सपने
खुली आँखों में
समा जाए तो क्या बात है!
बेधड़क बोलने वाले
सुनने वालों की नसीहत में
आ जाए तो क्या बात है!
साल गुजरे
चीख - चीत्कारों में
दंश सुलग जाए तो क्या बात है!
उम्मीदें हमें
जगाए रखीं घनी रात में
मन न अलसाए तो क्या बात है!
सुबोध सिंह पवार

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